China Bridge in Ladakh

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China Bridge in Ladakh: चीन भारत की जमीन पर लगातार अपना अवैध कब्जा कर रहा है. ड्रैगन लद्दाख के कई इलाकों को कब्जे में ले चुका है. इसी बीच सैटेलाइट इमेज से चीन (China Bridge in Ladakh) के मंसूबों का फिर से खुलासा हुआ है. चीन ने लद्दाख के पैंगोंग त्सो झील पर पुल बना लिया है और इसका काम भी लगभग पूरा हो गया है. चीन की इस नापाक हरकत को लेकर विपक्षी पार्टी ने केंद्र की मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि चीन ऐसी नापाक हरकतें सिर्फ इसलिए कर पा रहा है, क्योंकि नरेंद्र मोदी उसे क्लीन चिट दे चुके हैं।

PM मोदी के मुंह से आज नाम तक नहीं निकल रहा

कांग्रेस पार्टी ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा, लद्दाख में चीन अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने से बाज नहीं आ रहा है. सैटेलाइट में कैद हुई तस्वीरों से पता चलता है कि चीन (China Bridge in Ladakh) ने पूर्वी लद्दाख में पेंगोंग त्सो झील पर ब्रिज बनाया है. चीन इस ब्रिज के जरिए टैंक जैसे भारी हथियारों को भी ले जा सकेगा.

कांग्रेस ने आगे कहा, “ब्रिज लद्दाख के खुर्नाक इलाके में बनाया गया है. जो लद्दाख के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से को जोड़ता है. चीन ऐसी नापाक हरकतें सिर्फ इसलिए कर पा रहा है, क्योंकि नरेंद्र मोदी उसे क्लीन चिट दे चुके हैं. आज वही क्लीन चिट देश पर भारी पड़ रही है। लाल आंख की बात करने वाले नरेंद्र मोदी के मुंह से आज चीन (China Bridge in Ladakh) का नाम तक नहीं निकल रहा.”

एलएसी के पास इस पुल को बनाने के पीछे चीन का मकसद झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों के बीच तेजी से सैनिकों की तैनाती करना है. यह पुल झील के उत्तरी छोर पर फिंगर 8 से करीब 20 किलोमीटर पूर्व में है. चीन (China Bridge in Ladakh) ने इस पुल का निर्माण 2021 में लद्दाख की गलवान घाटी में हुई खूनी झड़प के बाद शुरू किया था.

सैटेलाइट तस्वीरों से हुआ खुलासा

हाल ही में आई सैटेलाइट तस्वीरों में इस के निर्माण के बारे में पता चला है. चीन (China Bridge in Ladakh) इन इस पुल को लद्दाख के खुरनाक इलाके में झील के सबसे संकरे हिस्से पर बनाया गया है. जो लद्दाख के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से को जोड़ रहा है. इस पुल के जरिए चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों की आवाजाही आसान हो जाएगी. वहीं, साल 2022 में खबर आई थी कि चीनी सेना पैंगोंग त्सो झील के सबसे संकरे इलाके खुरनाक में एक पुल का निर्माण कर रही है. बाद में पता चला कि यह एक सर्विस ब्रिज था, जिसका इस्तेमाल एक बड़ा पुल बनाने के लिए किया जा रहा था.

अब भारतीय ठिकानों तक जल्दी पहुंच जाएगा ड्रैगन

इस सैटेलाइट तस्वीरों को विशेषज्ञ डेमियन साइमन ने अपने अपने एक्स हैंडल पर शेयर की है. उन्होंने बताया कि पैंगोंग त्सो से प्राप्त तस्वीरों से पता चलता है कि नया पुल लगभग बनकर तैयार है, जिसकी सतह पर हाल ही में डामर बिछाई गई है. यह पुल क्षेत्र में चीनी सेना की गतिशीलता को बढ़ाता है, जिससे संघर्ष क्षेत्रों और झील के आसपास भारतीय ठिकानों तक जल्दी पहुंच मिलती है. बता दें कि इस पुल पर चीन (China Bridge in Ladakh) की सैनिक टैंकों के साथ जा सकेंगे, जिससे उन्हें रेजांग ला जैसे दक्षिणी इलाकों तक पहुंचने में मदद मिलेगी. यह वही जगह है, जहां से भारतीय सैनिकों ने 2020 में चीनियों को खदेड़ दिया था.

जियो-इंटेलिजेंस एक्सपर्ट डेमियन साइमन द्वारा जारी 17 जुलाई 2024 की सैटेलाइट इमेज से पता चला है कि पुल बनकर तैयार है और पुल पर सड़क भी बनकर तैयार है. जबकि 02 जुलाई 2024 को पुल और कनेक्टिंग रोड बनकर तैयार हो गया था लेकिन उस पर ब्लैकटॉपिंग नहीं की गई थी. वहीं, यह पुल पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी किनारे को दक्षिणी किनारे से जोड़ेगा, जिससे चीन (China Bridge in Ladakh) के लिए एक किनारे से दूसरे किनारे पर सैनिकों को तेज़ी से ले जाना आसान हो जाएगा. साथ ही, आगे के क्षेत्रों में रसद और आपूर्ति की आवाजाही तेज़ हो जाएगी. इसके अलावा, दक्षिणी तट पर रेजांग ला के पास स्पांगुर त्सो तक पहुंच आसान हो जाएगी.

पहले भी कर चुका है ऐसा

इससे पहले सितंबर 2020 और 2021 के दौरान, जब पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट पर गतिरोध चल रहा था, चीन (China Bridge in Ladakh) ने ऊंचाई वाले क्षेत्र में भारतीय सैनिकों की नजर से बचने के लिए मोल्डो गैरीसन तक एक नई सड़क का निर्माण किया था. बता दें कि पैंगोंग त्सो झील 14,000 फीट से ज़्यादा की ऊंचाई पर स्थित है और 3,488 किलोमीटर लंबी LAC से होकर गुजरती है. यह झील पूर्वी लद्दाख में है, जहां LAC की लंबाई करीब 826 किलोमीटर है.

यह झील 135 किलोमीटर लंबी है और 604 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है और इसकी चौड़ाई कुछ जगहों पर 6 किलोमीटर तक है. पैंगोंग त्सो का 45 किलोमीटर हिस्सा भारत में और 90 किलोमीटर हिस्सा चीन (China Bridge in Ladakh) में है. यह झील रणनीतिक रूप से इसलिए अहम है क्योंकि अगर चीन चुशूल के ज़रिए भारत पर हमला करना चाहे तो वह इस झील के रास्ते का इस्तेमाल कर सकता है.  


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