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भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह (DR. Manmohan Singh) अब हमारे बीच नहीं रहे. 92 वर्ष की आयु में गुरुवार (26 दिसंबर) को उनका निधन हो गया. वो काफी समय से बीमार थे. दिल्ली के एम्स में उनका इलाज चल रहा था. यहीं उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली. आज हम आपको बताएंगे उनके प्रधानमंत्री बनने की कहानी. कैसे उन्होंने वित्त मंत्री से देश का प्रधानमंत्री बनने का सफर तय किया.
मनमोहन सिंह कैसे बने देश के प्रधानमंत्री
तारीख 18 मई और साल था 2004. अटल बिहारी वाजपेई की सरकार को मात देकर कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनने जा रही थी. सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री बनना तय माना जा रहा था, तभी 10 जनपथ पहुंचे रामविलास पासवान को जानकारी मिली कि सोनिया पीएम नहीं बन रही हैं. उन्होंने खबर कन्फर्म करने के लिए सोनिया गांधी के सलाहकार अहमद पटेल को फोन लगाया तो वहां से भी कोई पॉजिटिव रिस्पॉस नहीं मिला. रामविलास पासवान अपने बायोग्राफी ‘संघर्ष, साहस और संकल्प’ में कहते हैं- मैं जैसे ही 10 जनपथ से बाहर निकला, यह खबर मीडिया में फ्लैश होने लगी. हम गठबंधन के लोग अचंभित थे कि अब कौन प्रधानमंत्री बनेगा, लेकिन जल्द ही कांग्रेस की तरफ से हमें इसको लेकर सूचित किया गया. जो नाम हमारे सामने आए, वो काफी चौंकाने वाले थे. वो नाम था मनमोहन सिंह का. 2004 में सोनिया गांधी के पीएम बनने से इनकार करने के बाद डॉ. मनमोहन सिंह (DR. Manmohan Singh) को प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंपी गई.
मनमोहन सिंह को एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर क्यों कहा जाता है?
औक्सफॉर्ड और कैंब्रिज की डिग्रियां उनके पास तो थी हीं, साथ ही उनके पास था वित्तिय मामलों का बड़ा अनुभव. इन्हीं सब कारणों की वजह से उन्हें प्रधानमंत्री चुना गया. प्रणव मुखर्जी और अर्जुन सिंह जैसे दिग्गजों की दावेदारी के बीच सोनिया ने तब डॉ. मनमोहन सिंह (DR. Manmohan Singh) पर भरोसा किया और प्रधानमंत्री के रूप में अपने संपूर्ण कार्यकाल में उन्होंने इस भरोसे पर कोई आंच नहीं आने दी. यही कारण है कि राजनीतिक इतिहास में उन्हें एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर के नाम से भी जाना जाता है.
मनमोहन सिंह के लिए बड़े फैसले
बतौर प्रधानमंत्री अपने 10 साल के शासनकाल में उन्होंने कई ऐसे बड़े और महत्वपूर्ण फैसले लिए, जिसने भारत को और अधिक ऊंचाइयों पर ले जाने का काम किया. शिक्षा का अधिकार (RTE), सूचना का अधिकार (RTI), मनरेगा योजना, महिला आरक्षण और सशक्तिकरण, आधार योजना, चायती राज और ग्रामीण विकास, सामाजिक और स्वास्थ्य सुधार, 2008 में अमेरिका के साथ हुआ परमाणु समझौते जैसे तमाम कई ऐसे बड़े फैसले हैं, जो उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए लिए. इसके अलावा उनके कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था ने रफ्तार के नए रिकॉर्ड कायम किए थे. 2008 की आर्थिक मंदी के झटकों से भी उन्होंने अर्थव्यवस्था को उबारा था. प्रधानमंत्री रहते हुए करोड़ों लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने का श्रेय भी डॉ. मनमोहन सिंह (DR. Manmohan Singh) को दिया जाता है.
राजनीति में मनमोहन सिंह का सफर
बात करें मनमोहन सिंह की शुरुआती राजनीतिक सफर की तो साल 1980 से 82 तक वो प्लानिंग कमीशन में रहे थे. 1982 से 1985 तक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर रहे. 1991 में वे वित्त मंत्री बने. वित्त मंत्री के रूप में उनका ये कार्यकाल मील का पत्थर साबित हुआ. जब नरसिंह राव ने 1991 में प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली तब देश लगभग कंगाली के मुहाने पर था. भारत का अधिकांश सोना विदेश में गिरवी रखा जा चुका था और कर्ज का डिफॉल्टर बनने की नौबत थी. तब मनमोहन सिंह को भारत को आर्थिक संकट से निकालने का जिम्मा सौंपा गया. उनके कार्यकाल में उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए, जिससे भारत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया. उनके इस काम के लिए पूरी दुनिया में उनका नाम हुआ. 2004 में अटल विहारी वाजपेई की सरकार को हराकर कांग्रेस ने जीत हासिल की. जिसके बाद मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने. डॉ. मनमोहन सिंह (DR. Manmohan Singh) 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे.
अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर विरोध के बाद भी मनमोहन सिंह रूके नहीं
प्रधानमंत्री रहते हुए डॉ. मनमोहन सिंह (DR. Manmohan Singh) को उनके राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें कठपुतली और कमजोर बताकर ना जाने क्या क्या नाम दिए. लेकिन संयम का अनूठा उदाहरण पेश करते हुए मनमोहन सिंह ने इसका प्रतिवाद करने के बजाय अपने कामों से इसका जवाब दिया. इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझोते का उनका फैसला रहा, जब वामपंथी दलों के समर्थन वापसी की धमकी और दबाव में न आते हुए उन्होंने इसे पूरा किया. वामपंथी दलों ने समर्थन वापस ले लिया तो सोनिया गांधी के साथ मिलकर समाजवादी पार्टी का समर्थन जुटाकर उन्होंने न केवल सरकार बचाई बल्कि ऐतिहासिक परमाणु समझौते को मुकाम तक पहुंचाया. जिससे देश को काफी फायदा हुआ.
पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के साथ मनमोहन सिंह के रिश्ते
जटिल हालात में भी बेहतर नतीजे निकालने की उनकी क्षमता की कांग्रेस में अक्सर चर्चाएं होती हैं. पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणव मुखर्जी के साथ उनके रिश्ते बेहद खास थे. प्रधानमंत्री होते हुए भी डॉ. मनमोहन सिंह (DR. Manmohan Singh) कई बार प्रणब मुखर्जी के गुस्से को काबू में करने के लिए उन्हें सर बुलाते थे. उनके सर बोलते ही प्रणब मुखर्जी नरम पड़ जाते थे और कहते थे कि आप देश के प्रधानमंत्री होकर मुझे सर क्यों कहते हैं. मगर वास्तविकता यह भी थी कि मनमोहन सिंह अपने कैबिनेट के सहयोगी के राजनीतिक कद और अनुभव का पूरा सम्मान करते थे.
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह (DR. Manmohan Singh) के महान योगदान के लिए भारत उन्हें कभी नहीं भूलेगा. उन्हें एक महान अर्थशास्त्री और एक संवेदनशील नेता के तौर पर हमेशा याद किया जाएगा.