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Randeep Guleria Interview: एम्स दिल्ली के पूर्व डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने प्रदूषण को लेकर बड़ा और चौंकाने वाला दावा किया है. गुलेरिया ने कहा कि कोरोना महामारी की वजह से जितनी मौतें हुई, उससे कहीं ज्यादा मौतें हर साल सिर्फ प्रदूषण से हो रही हैं और लोग इसके बारे में चिंता नहीं कर रहे हैं. बता दें कि दुनियाभर में कोरोना वायरस से करीब 70 लाख लोगों की मौत हुई है. इसमें सबसे ज्यादा मौतें (12 लाख से ज्यादा) अमेरिका में हुई हैं. कोरोना से होने वाली मौतों के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है. यहां कोरोना वायरस से अब तक 5.33 लाख लोगों की जान जा चुकी है.
क्या बोले Randeep Guleria?
मेदांता के इंटरनल मेडिसिन, रेस्पिरेटरी और स्लीप मेडिसिन के चेयरमैन और एम्स दिल्ली के पूर्व डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया (Randeep Guleria) ने कहा कि हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट 2021 में कहा गया है कि दुनिया में लगभग 80 लाख लोग वायू प्रदूषण के कारण मर गए. यह कोविड-19 के कारण मरने वाले लोगों की संख्या से भी अधिक है. हम कोविड के बारे में चिंतित हैं, लेकिन हम वायू प्रदूषण के बारे में चिंतित नहीं हैं.
वायू प्रदूषण को लेकर गुलेरिया ने आगे कहा कि भारत के हालिया डेटा से पता चलता है कि पीएम 2.5 में केवल 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि मौत की दर को काफी ज्यादा बढ़ा देती है. यह सांस और हृदय संबंधी समस्याओं के कारण होता है. वायु प्रदूषण फेफड़ों में अधिक सूजन पैदा करता है. श्वसन संबंधी समस्या बिगड़ जाती है. मरीज कई बार आईसीयू या वेंटिलेटर में पहुंच जाते हैं और इससे मृत्यु दर बढ़ जाती है.
प्रदूषण से हो सकती हैं ये बिमारियां
गुलेरिया (Randeep Guleria) ने आगे कहा, “इसी तरह जिन लोगों को हृदय रोग है. यह हृदय की वाहिकाओं में सूजन या सूजन का कारण बनता है और इससे दिल का दौरा पड़ने की आशंका भी बढ़ जाती है. सिर्फ हृदय और फेफड़ों की ही बात नहीं है, प्रदूषण शरीर के लगभग किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है क्योंकि वायु प्रदूषकों के ये सूक्ष्म कण 2.5 माइक्रोन से कम होते हैं. जब ये रसायन फेफड़ों से शरीर में प्रवेश करते हैं, तो विभिन्न अंगों में जा सकते हैं, जिससे दीर्घकालिक प्रभाव वाली बीमारियां हो सकती हैं. जैसे डिमेंशिया, तंत्रिका संबंधी समस्याएं, मधुमेह, मेटाबोलिक सिंड्रोम, ये सभी वायु प्रदूषण से जुड़े हुए हैं.”
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