ECI: शनिवार (9 मार्च) को पूर्व आईएएस अधिकारी अरुण गोयल ने चुनाव आयोग के पद से इस्तीफा दे दिया. लोकसभा चुनाव के ठीक पहले उनके इस्तीफा देने से कई तरह के सवाल पैदा हो गए हैं. सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि अभी अरुण गोयल का कार्यकाल खत्म होने में 3 साल बाकी हैं. ऐसे में अपने कार्यकाल पूर्ण होने से पहले ही इस्तीफा देना शक पैदा कर रहा है कि कहीं किसी दबाव में आकर तो अरुण गोयल ने ये कदम नहीं उठाया है.
लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इस्तीफा
पंजाब काडर के पूर्व आईएएस अधिकारी अरुण गोयल ने ऐसे वक्त पर चुनाव आयुक्त पद से इस्तीफा दिया है जब कुछ ही दिनों में लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा होने वाली है. इसके पहले पीछले महीने ही दूसरे चुनाव आयुक्त अनूप पांडे भी रिटायर हुए हैं.
बता दें कि चुनाव आयोग (ECI) में 1 मुख्य चुनाव आयुक्त और 2 अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं. ऐसे में अरुण गोयल के इस्तीफे के बाद तीन सदस्यों वाले चुनाव आयोग में अब केवल एक ही मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार बचे हैं.
विपक्ष ने उठाया सवाल
देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने गोयल के इस्तीफे को लेकर कई तरह के गंभीर सवाल उठाए हैं. कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर कहा कि चुनाव आयोग में 1 मुख्य चुनाव आयुक्त और 2 अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं. कल शाम अरुण गोयल ने चुनाव आयुक्त पद से इस्तीफा दिया. दूसरे आयुक्त अनूप पांडेय पिछले महीने ही रिटायर हो चुके. चुनाव से कुछ हफ़्तों पहले चुनाव आयोग में सिर्फ मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार हैं. अब दोनों आयुक्त नरेंद्र मोदी मनमाने तरीके से तय करेंगे. सवाल यह है कि क्या अरुण गोयल ने मोदी सरकार के साथ उभरे मतभेद पर इस्तीफा दिया? जो भी हो, लोकतंत्र को मटियामेट करने में PM मोदी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
ECI पर भी हुआ कब्जा
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि भारत में अब केवल एक चुनाव आयुक्त है, जबकि कुछ ही दिनों में लोकसभा चुनावों की घोषणा होनी है. जैसा कि मैंने पहले कहा है, यदि हम अपने स्वतंत्र संस्थानों के व्यवस्थित विनाश को नहीं रोकते हैं, तो तानाशाही द्वारा हमारे लोकतंत्र पर कब्जा कर लिया जाएगा. ईसीआई अब गिरने वाली अंतिम संवैधानिक संस्थाओं में से एक होगी.
खरगे ने आगे कहा कि चूँकि चुनाव आयुक्तों के चयन की नई प्रक्रिया ने अब प्रभावी रूप से सारी शक्तियां सत्ताधारी दल और प्रधान मंत्री को दे दी हैं, तो 23 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के बाद भी नए चुनाव आयुक्त की नियुक्ति क्यों नहीं की गई है? मोदी सरकार को इन सवालों का जवाब देना चाहिए और उचित स्पष्टीकरण देना चाहिए.
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