Electoral Bond: इलेक्टोरल बॉन्ड से मोदी सरकार ने सिर्फ सबसे ज्यादा धन वसूला है, बल्कि उसके नियमों का भी उल्लंघन किया. चुनाव आयोग के नए खुलासे ने पता चला है कि मोदी सरकार ने 2018 के कर्नाटक चुनाव से ठीक पहले समाप्त हो चुके चुनावी बॉन्ड को भुनाया. इसके लिए केंद्र सरकार की तरफ से भारतीय स्टेट बैंक पर दबाव बनाया गया. दिवंगत भाजपा नेता अरुण जेटली के नेतृत्व वाले केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने एसबीआई को 1 करोड़ रुपये के 10 चुनावी बांड स्वीकार करने के लिए मजबूर किया, क्योंकि उनकी पार्टी के लोग समाप्त हो चुके चुनावी बांड को भुनाने के लिए बैंक में आए थे.
15 दिन बाद जबरदस्ती भुनाया इलेक्टोरल बॉन्ड
बता दें कि इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) का नियम कहता है कि यदि जारी होने के 15 दिन बाद तक बॉन्ड को नहीं भुनाया गया तो वह पैसा पीएम रिलीफ फंड में चला जाता है. नीचे दिए गए डेटा में आप देख सकते हैं कि बीजेपी को 5 मई, 2018 को 1 करोड़ के 10 बॉन्ड मिले. जिसे 23 मई को एसबीआई के बैंगलोर ब्रांच में जमा किया गया. ये बॉन्ड एक्सपायर हो चुके थे, क्योंकि उनकी मोचन की 15 दिन की अवधि समाप्त हो गई थी.
नियमों के अनुसार, यह पैसा प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में दान किया जाना था, जो एक आधिकारिक, गैर-पक्षपातपूर्ण निधि है, जिसका उपयोग धर्मार्थ कार्यों के लिए किया जाता है, और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए किया जाता है. लेकिन मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड के नियमों का उल्लंघन किया और एक्सपायर्ड चुनावी बॉन्ड को भुनवा लिया.
फिर तोड़े गए नियम
चुनावी बांड नियमों का उल्लंघन यहीं खत्म नहीं हुआ. यहां तक कि जिस किश्त में भाजपा को ये बांड मिले, वह भी योजना के खिलाफ था. जनवरी 2018 में अधिसूचित नियमों के अनुसार, जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में चार 10-दिवसीय विंडो होनी थीं. लेकिन 2018 में प्रधान मंत्री कार्यालय ने वित्त मंत्रालय को अपने नियमों को तोड़ने और कर्नाटक चुनाव से पहले बांड बिक्री के लिए 10-दिवसीय अतिरिक्त “विशेष” विंडो खोलने का आदेश दिया.
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