Jairam Ramesh On PM Modi: देश में अमीर और गरीब के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है. अमीर….और अमीर होते जा रहे हैं, वहीं गरीब….और गरीब होते जा रहे हैं. रोजमर्रा की चीजों के दाम भी सातवें आसमान पर हैं. बढ़ती महंगाई ने गरीब आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है. रोजगार का अलग रोना, तो वहीं युवाओं के लिए नौकरियों के लाले पड़े हुए हैं. केंद्र की मोदी सरकार चुनावी रैलियों में महंगाई और बेरोजगारी को दूर करने के वादे तो बड़े-बड़े करती है. लेकिन उसका असर धरातल पर शून्य के बराबर देखने को मिलता है.
अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई
विपक्षी पार्टियां देश में अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई के इस मुद्दे का लगातार उठा रही हैं. लेकिन सरकार उनकी बातों पर विचार-विमर्श करने के मूड में दिखाई नहीं देती. इसी मुद्दे को लेकर कांग्रेस पार्टी के महासचिव जयराम रमेश (Jairam Ramesh On PM Modi) ने सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट शेयर करते हुए लिखा, कांग्रेस पार्टी लगातार इस मुद्दे को उठा रही है कि “देश में अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है. अब इन आंकड़ों को ही देखिए- देश के 5 % सबसे गरीब लोगों का मासिक उपभोग ख़र्च महज 1,373 रुपए है, वहीं टॉप 5% अमीरों का मासिक उपभोग खर्च 20,824 रुपए है. सबसे अमीर और सबसे गरीब परिवारों के बीच हर महीने 20 गुणा का अंतर है. यह नया डाटा है. लेकिन चाहे जो भी आंकड़ा देखें, सभी अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई के सबूत दिखाते हैं”
संपत्ति का बड़ा हिस्सा 21 अमीरों के पास
जयराम रमेश (Jairam Ramesh On PM Modi) ने आगे लिखा, “2012 से 2021 तक देश में बनी संपत्ति का 40% से अधिक हिस्सा सिर्फ 1% आबादी के पास गया है. देश में कुल वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का लगभग 64% ग़रीबों, लोअर मिडिल क्लास और मिडिल क्लास से आता है. पिछले दस वर्षों में अधिकांश सार्वजनिक संपत्तियां और संसाधन एक या दो कंपनियों के हाथों बेचे गए हैं- अर्थशास्त्रियों ने बताया है कि अर्थव्यवस्था में बढ़ते एकाधिकार के कारण महंगाई बढ़ी है. आज 21 अरबपतियों के पास कुल मिलाकर 70 करोड़ भारतीयों से अधिक संपत्ति है.”
2014 से कम निवेश हो रहा
वहीं, एक अन्य पोस्ट में कांग्रेस नेता जयराम रमेश (Jairam Ramesh On PM Modi) ने लिखा, 2014 के बाद से भारत के तेजी से वृद्धि न करने का मुख्य कारण सुस्त निवेश दर है- अस्थिर नीतियां, मित्र पूंजीवाद का बोलबाला और ED/IT/CBI रेड राज इन तीन वजहों से 2014 से कम निवेश हो रहा है. कम निवेश मध्यम और दीर्घकालिक GDP की वृद्धि दर को नीचे खींचता है, जिसके परिणामस्वरूप मजदूरी और उपभोग वृद्धि में गिरावट आती है भारत में निजी घरेलू निवेश 2014 से सुस्त है. डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल ( प्रधानमंत्री) के दौरान यह GDP के 25- 30% के रेंज में था. स्वयंभू परमात्मा के अवतार के कार्यकाल में, यह GDP के 20-25% के रेंज में है
उन्होंने आगे लिखा, “2014 से सकल एफडीआई भी कमोबेश स्थिर रहा है. हालांकि, यह कहानी का केवल एक हिस्सा भर है. कम से कम 2016 से, दुनिया भर की बहु-राष्ट्रीय कंपनियां चीन से हटकर अन्य विकासशील देशों में निवेश करना चाह रही हैं. इस स्थिति में भारत एक बड़े और बढ़ते लेबर पूल के साथ सही समय पर बिल्कुल सही जगह पर था- लेकिन एफडीआई हासिल करने और मैन्युफैक्चरिंग एवं निर्यात-उन्मुख अर्थव्यवस्था बनने का यह अवसर बर्बाद कर दिया गया. बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देश लाभ लेने में कामयाब हो गए. कॉरपोरेट टैक्स में कटौती और पीएलआई जैसी रियायतें मौलिक रूप से मुक्त समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था की भरपाई नहीं कर सकती हैं जो कि नोटबंदी जैसे मास्टरस्ट्रोक, मित्र पूंजीवाद और रेड राज से ग्रस्त है. भारत को नीतियों में छोटे-मोटे फेरबदल की नहीं, बल्कि राजनीतिक अर्थव्यवस्था के लिए एक नए, उदारता से भरे दृष्टिकोण की जरूरत है.”
Also Read-
गुजरात के बाद मुंबई में उमड़ी बेरोजगार युवाओं की भीड़, मची भगदड़; देखें Video
मोदी राज में 6.7 मिलियन बच्चों को पूरे दिन नहीं मिलता भोजन, रिपोर्ट में हुआ खुलासा