Jairam Ramesh On PM Modi: देश में बढ़ती महंगाई और बेजगारी ने आम आदमी का बूरा हाल कर रखा है. लेकिन केंद्र की मोदी सरकार इस बात को नकाराती जा रही है. वहीं, इस सबसे युवाओं को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि जब भी वह किसी परीक्षा का पेपर देते हैं. यह तो वह लीक हो जाता है या फिर बाद धांधली हो जाती है. ऐसे में कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने मोदी सरकार पर बड़ा हमला बोला है. उनका कहना है कि भारत गंभीर रूप से मोदी-मेड बेरोजगारी संकट का सामना कर रहा है.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “ऐसे समय में जब भारत गंभीर रूप से मोदी-मेड बेरोजगारी संकट का सामना कर रहा है, जब हर नौकरी के लिए लाखों युवा आवेदन कर रहे हैं, तब स्वयंभू नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने, ध्यान भटकाने और वास्तविकता से इंकार करने में लगे हैं. आरबीआई के नए अनुमान के आधार पर सरकार जॉब मार्केट में तेज़ी का दावा कर रही है. स्व-नियुक्त परमात्मा के अवतार ने खुद यह दावा किया है कि अर्थव्यवस्था ने 80 मिलियन नौकरियां पैदा की हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “लेकिन सच्चाई यह है कि रोजगार के आंकड़ों में कथित वृद्धि पीएम मोदी के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था की गंभीर वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं है, जहां निजी निवेश कमजोर रहा है और उपभोग में वृद्धि बेहद सुस्त है. सरकार ने रोजगार की गुणवत्ता और परिस्थितियों पर ध्यान दिए बिना, रोजगार की बहुत विस्तृत परिभाषा अपनाकर, रोजगार सृजन का दावा करने के लिए कुछ कलात्मक सांख्यिकीय बाज़ीगरी की है. जो “रोजगार वृद्धि” का दावा किया जा रहा है उसमें महिलाओं द्वारा किए जाने वाले अवैतनिक घरेलू काम को भी “रोजगार” के रूप में दर्ज किया गया है. यह रोजगार वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा है, लेकिन इसमें कोई वेतन नहीं मिलता.”
औपचारिक रोजगार की हिस्सेदारी में कमी
जयराम रमेश ने कहा, “खराब आर्थिक माहौल के बीच, श्रम बाजार में वेतनभोगी, औपचारिक रोजगार की हिस्सेदारी में कमी आई है. श्रमिक कम उत्पादकता वाली असंगठित और कृषि क्षेत्र की नौकरियों की ओर जा रहे हैं यह एक आर्थिक त्रासदी है. ’80 मिलियन नई नौकरी’ वाली हेडलाइन में नौकरियों की गुणवत्ता पर चर्चा उस तरह से नहीं हुई. लेकिन यह हास्यास्पद है कि सरकार इन कम उत्पादकता, कम वेतन वाली नौकरियों के ‘सृजन’ को एक उपलब्धि के रूप में पेश कर रही है. इसी धोखे के कारण RBI का डेटा COVID-19 महामारी के वर्षों के दौरान रोजगार में वृद्धि दिखाता है, जबकि तब अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा पूरी तरह से ठप पड़ा हुआ था. शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में 2020-21 में 12 लाख कम नौकरियां देखी गई, वहीं कृषि में 1.8 करोड़ “नौकरियां” पैदा हुई.”
कांग्रेस नेता ने कहा, “इस प्रकार फैक्ट्री कर्मचारी, शिक्षक, खनिज, आदि जो COVID-19 के दौरान घर लौट आए और उन्हें अपने परिवार के खेतों में खेती करनी पड़ी या उन्हें अमीर किसान के लिए किरायेदार के रूप में काम करना पड़ा. इन्हें भी कृषि के क्षेत्र में रजिस्टर्ड नौकरी के रूप में दिखा दिया गया है. आगामी बजट भी निस्संदेह अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश करने के लिए आरबीआई डेटा का उपयोग करेगा. लेकिन, नौकरियों के मोर्चे पर वास्तविक हालात बेहद गंभीर है बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी और कम गुणवत्ता वाले रोजगार दोनों के कारण. अगले मंगलवार को बजट भाषण में इस दोहरी त्रासदी को निश्चित रूप से नजरअंदाज किया जाएगा.”
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