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Air Pollution: देश में वायु प्रदूषण (Air Pollution) एक बड़ी समस्या है, लेकिन अब हाल ही में एक रिसर्च में इसे लेकर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, जिसमें कहा गया है कि भारत के केवल 10 शहरों में वायु प्रदूषण से हर साल लगभग 34,000 मौतें हो रही है. इसके अवाला भारत में होने वाली सभी मौतों में से 7.2% वायु प्रदूषण से सम्बंधित हैं. इसी बीच कांग्रेस पार्टी ने बड़ी वायु प्रदूषण को लेकर चिंता जाहिर की.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “इस महीने की शुरुआत में एक अध्ययन से पता चला था कि भारत में होने वाली सभी मौतों में से 7.2% वायु प्रदूषण से संबंधित हैं – केवल 10 शहरों में हर साल लगभग 34,000 मौतें. अब सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एक नए अध्ययन ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) का मूल्यांकन किया है और उस नीतिगत अव्यवस्था को हाइलाइट किया है जिसके परिणामस्वरूप यह सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट पैदा हुआ है.”
उन्होंने कहा, “15वें वित्त आयोग के अनुदान सहित NCAP का वर्तमान समय में बजट लगभग 10,500 करोड़ रुपए है और इसके अंतर्गत 131 शहर आते हैं! इस हिसाब से यह धनराशि तो NCAP के लिए बेहद कम है. ऊपर से इस अल्प राशि में से भी केवल 64% का ही इस्तेमाल किया गया.”
फंड का 64% सड़क की धूल शमन पर खर्च किया गया
जयराम रमेश ने आगे कहा, “ख़राब नीति निर्धारण के कारण उपलब्ध संसाधनों का गलत दिशा में इस्तेमाल हुआ है. NCAP के प्रदर्शन का मूल्यांकन और इस वजह से इसका हस्तक्षेप भी पीएम 2.5 (2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास वाले कण पदार्थ) के बजाय पीएम 10 (10 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास वाले कण) पर अधिक केंद्रित है. जबकि पीएम 2.5 कहीं अधिक खतरनाक है. उपयोग किए गए फंड का 64% सड़क की धूल शमन पर खर्च किया गया, जो कि उद्योगों (धन का 0.61%), वाहनों (धन का 12.63%), और बायोमास जलाने (14.51%) से दहन से जुड़े उत्सर्जन को नियंत्रित करने पर होने वाले खर्च से कहीं अधिक जबकि ये उत्सर्जन लोगों के स्वास्थ्य के लिए कहीं अधिक खतरनाक हैं.”
22 शहरों में वायु प्रदूषण (Air Pollution) की स्थिति बदतर
कांग्रेस नेता ने कहा, “NCAP के तहत 131 शहरों में से अधिकांश के पास अपने वायु प्रदूषण (Air Pollution) को ट्रैक करने के लिए डेटा भी नहीं है. जिन 46 शहरों के पास डाटा है, उनमें से केवल 8 शहरों ने NCAP के कम लक्ष्य को पूरा किया है, जबकि 22 शहरों में वास्तव में वायु प्रदूषण (Air Pollution) की स्थिति बदतर हो गई है.”
कांग्रेस नेता ने बताया, कैसे सरकार वायु प्रदूषण पर करें कंट्रोल…
- वायु प्रदूषण (नियंत्रण और रोकथाम) अधिनियम 1981 में अस्तित्व में आया और राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS) नवंबर 2009 में लागू किया गया. लेकिन, पिछले दशक में, वायु प्रदूषण के सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणाम – रोगों की संख्या और मृत्यु दर, दोनो ही मामले में बिलकुल स्पष्ट है. अब समय आ गया है कि अधिनियम और NAAQS दोनों पर दोबारा गौर किया जाए और इसमें पूर्ण रूप से सुधार किया जाए.
- हमारे शहरों को कम से कम 10-20 गुना अधिक फंडिंग की ज़रूरत है. NCAP को 25,000 करोड़ रुपए का कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए.
- एनसीएपी को प्रदर्शन के पैमाने के रूप में पीएम 2.5 स्तर के माप को अपनाना चाहिए.
- एनसीएपी को उत्सर्जन के प्रमुख स्रोतों ठोस ईंधन जलाने, वाहन से होने वाले उत्सर्जन और औद्योगिक उत्सर्जन पर अपना ध्यान फिर से केंद्रित करना चाहिए.
- एनसीएपी को वायु गुणवत्ता नियंत्रण के लिए एक क्षेत्रीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए – नगर पालिका और राज्य प्राधिकरणों के पास न्याय क्षेत्रों में सहयोग करने के लिए आवश्यक शासन वास्तुकला और संसाधन होने चाहिए
- अभी NCAP का फोकस केवल गैर-प्राप्ति शहरों पर है. इससे परे NCAP को कानूनी समर्थन और प्रवर्तन तंत्र मिलना चाहिए. साथ ही इसकी क्षमता सभी भारतीय शहरों के लिए डेटा निगरानी की होनी चाहिए.
- कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए वायु प्रदूषण के सभी मानदंडों को तुरंत लागू किया जाना चाहिए. यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी बिजली संयंत्र 2024 के अंत तक FGD स्थापित करें.
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की स्वतंत्रता बहाल की जानी चाहिए, और पिछले 10 वर्षों में किए गए जन-विरोधी पर्यावरण कानून संशोधनों को वापस लिया जाना चाहिए.
जयराम रमेश ने कहा , “आगामी केंद्रीय बजट को इस गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए भारत के स्थानीय निकायों, राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को संसाधन एवं अन्य आवश्यक चीज़ों से लैस करने का रास्ता बनाना चाहिए.”
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