सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी की इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुये इसे रद्द कर दिया है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना के तहत राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे का खुलासा करने का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (SBI) को निर्देश देते हुए कहा है कि वो चुनावी चंदे से संबंधित पूरी जानकारी 6 मार्च 2024 (लोकसभा चुनाव के पूर्व) के पहले सार्वजनिक करते हुए चुनाव आयोग को सौंपे.
15 फरवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसका पूरे देश ने स्वागत किया था और इसे चुनाव में कालेधन के उपयोग और सत्ता में पूँजीपतियों की ग़ैर क़ानूनी हिस्सेदारी के खिलाफ सबसे बड़ा कदम माना जा रहा था. गौरतलब है कि सत्ताधारी बीजेपी, जो कि चुनावी बॉन्ड योजना की इकलौती सबसे बड़ी लाभार्थी है, सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद से बेचैन है. बीजेपी को डर है कि उसके चंदा देने वाले मित्रों की जानकारी सार्वजनिक होते ही बीजेपी की बेईमानी का सारा भंडाफोड़ हो जायेगा.
कैसे खुल जाएगी पोल
चंदा कौन दे रहा था, उसके बदले उसको क्या मिला, उनके फ़ायदे के लिए कौन से क़ानून बनाये गये, क्या चंदा देने वालों के ख़िलाफ़ जाँच बंद की गयीं, क्या चंदा लेने के लिए जाँच की धमकी दी गयीं, यह सब पता चल जाएगा.
बीजेपी और मोदी सरकार ने भारतीय स्टेट बैंक पर जानकारी साझा नहीं करने का दबाव बनाया. जिस वजह से कल यानी सोमवार को स्टेट बैंक ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आवेदन देकर जानकारी साझा करने के लिए 30 जून तक का समय मांग लिया.
इन सवालों का जवाब कौन देगा ?
- देश के सबसे बड़े पूर्णतः कम्प्यूटरीकृत बैंक को इलेक्टोरल बॉंड की जानकारी देने के लिये 5 माह का समय क्यों चाहिए ? जबकि संपूर्ण जानकारी एक क्लिक से 5 मिनट में निकाली जा सकती है.
- स्टेट बैंक ने जानकारी देने के लिये और समय की माँग जानकारी देने की अंतिम तिथि के एक दिन पहले ही क्यों की ? क्या कितना समय लगेगा इसकी गणना करने के लिये भी एक माह का समय लग गया ?
- 48 करोड़ अकाउंट, 66 हज़ार एटीएम और 23 हज़ार ब्रांच संचालित करने वाली SBI को केवल 22217 इलेक्टोरल बॉंड की जानकारी देने के लिये 5 महीने का समय चाहिए ?
- सवाल उठता है कि क्या देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक भी अब बीजेपी सरकार की आर्थिक अनियमितता और कालेधन के स्रोत को छिपाने का ज़रिया बन रहा है.
- सवाल उठता है कि क्या एक राजनीतिक दल और एक सरकारी बैंक मिलकर देश की उच्चतम अदालत के फ़ैसले को ठेंगा दिखा रहे हैं.
- सवाल उठता है कि क्या लोकसभा चुनाव के पहले देश की जनता को सही जानकारी प्राप्त कर मतदान में सही निर्णय लेने का हक़ नहीं है ?