UP BJP में पड़ी फूट
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Kanwar Yatra 2024: कांवड़ यात्रा पर योगी सरकार के फैसले को लेकर विवाद जारी है. दरअसल योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा के रूट में पड़ने वाले ढाबे और दुकानों पर दुकान के मालिक का नाम लिखने का आदेश जारी किया है. पहले यह आदेश केवल मुजफ्फरनगर जिले में आया था, लेकिन योगी सरकार बाद में इस फैसले को पूरे प्रदेश भर में लागू कर दिया. हालांकि उनके इस फैसले के बाद योगी सरकार की आलोचना शुरु हो गई है.
सहयोगी हुए विरोधी (Kanwar Yatra 2024)
पहले केवल विपक्ष के नेता योगी सरकार के इस आदेश की आलोचना कर रहे थे, लेकिन अब एनडीए के सहयोगी नेता भी सीएम योगी के इस फैसले को लेकर उनपर हमलावर हो गए हैं. विपक्ष ने इस फैसले को जहां विभाजनकारी और संविधान पर हमला बताया है, वहीं एनडीए की सहयोगी पार्टी जेडीयू ने इस फैसले पर दोबारा समीक्षा की मांग की है. दूसरी तरफ जयंत चौधरी की आरएलडी और चिराग पासवान की एलजेपी ने भी यूपी सरकार के फैसले को गलत ठहराया है.
क्या है पूरा मामला? (Kanwar Yatra)
दरअसल, यूपी के मुजफ्फरनगर में पुलिस ने 240 किलोमीटर लंबे कांवड़ यात्रा के रूट में पड़ने वाले सभी दुकानदारों, ढाबों और रेहड़ी-पटरी वालों को आदेश दिया है कि वो अपने दुकान के आगे अपने नाम की तख्ती लटका लें. योगी सरकार ने इसके बाद शुक्रवार (19 जुलाई) को इस फैसले को पूरे राज्यभर में लागू कर दिया. योगी सरकार के इस फैसले के बाद विपक्ष के साथ एनडीए के सहयोगी नेता भी नाराज हैं.
जेडीयू ने कहा- फैसला वापस हो (Kanwar Yatra)
एनडीए का हिस्सा जेडीयू ने इस फैसले को वापस लेने की मांग की है. पार्टी वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने भी इस आदेश को लेकर योगी सरकार की आलोचना की है. केसी त्यागी ने कहा कि इससे बड़ी यात्रा बिहार में निकलती है. वहां इस तरह का कोई आदेश नहीं है. प्रधानमंत्री की जो व्याख्या है- ‘सबका साथ-सबका-विकास- सबका विश्वास’, उसमें ये लगाए गए प्रतिबंध पीएम मोदी के इस व्याख्या के विरुद्ध हैं. इस नियम पर पुनर्विचार हो तो अच्छा है.
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यह मुसलमानों की पहचान करने और लोगों को उनसे सामान न खरीदने के लिए प्रोत्साहित करने जैसा है. इस प्रकार का आर्थिक बहिष्कार समाज के लिए अनुचित है. उन्होंने यह भी कहा कि हम एनडीए को खुशहाल और मजबूत होते देखना चाहते हैं. इसलिए चाहते हैं कि यह नियम वापस हो. इस नियम पर समीक्षा होनी चाहिए.
आरएलडी ने बताया गैर-संवैधानिक
वहीं जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी ने भी योगी सरकार के इस फैसले को गैर- संवैधानिक बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की है. आरएलडी के यूपी अध्यक्ष रामाशीष राय ने कहा, “इस तरह के भेदभाव और एक समुदाय के बहिष्कार से बीजेपी और राज्य का कोई भला नहीं होगा. कुछ पुलिस अधिकारी और नौकरशाह सरकार को गुमराह कर रहे हैं और मैं मुख्यमंत्री से ऐसे आदेश को वापस लेने की अपील करता हूं.”
रामाशीष राय ने कहा कि उत्तर प्रदेश प्रशासन का दुकानदारों को अपनी दुकान पर अपना नाम और धर्म लिखने का निर्देश देना संप्रादायिकता को बढ़ावा देने वाला कदम है. प्रशासन इसे वापस ले. यह गैर-संवैधानिक निर्णय है.
चिराग पासवान ने खुलकर किया विरोध (Kanwar Yatra 2024)
एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान से कहा कि वह योगी सरकार के इस फैसले से बिलकुल सहमत नहीं हैं. चिराग ने कहा कि समाज में समाज में अमीर और गरीब दो श्रेणियों के लोग मौजूद हैं और विभिन्न जातियों एवं धर्मों के व्यक्ति इन दोनों ही श्रेणियों में आते हैं. हमें इन दोनों वर्गों के लोगों के बीच की खाई को पाटने की जरूरत है. गरीबों के लिए काम करना हर सरकार की जिम्मेदारी है, जिसमें समाज के सभी वर्ग जैसे दलित, पिछड़े, ऊंची जातियां और मुस्लिम भी शामिल हैं. समाज में सभी लोग हैं. हमें उनके लिए काम करने की आवश्यकता है.
पासावन ने आगे कहा, “जब भी जाति या धर्म के नाम पर इस तरह का विभेद होता है, तो मैं न तो इसका समर्थन करता हूं और न ही इसे प्रोत्साहित करता हूं. मुझे नहीं लगता कि मेरी उम्र का कोई भी शिक्षित युवा, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म से आता हो, ऐसी चीजों से प्रभावित होता है.”
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