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USA के राष्ट्रपति ट्रंप ने अंधभक्तों और चरणचुंबकों को मजे लेने के लिए एक लीड दी, वो भी फेक निकली. ऐसे में बेचारे अंधभक्तों का क्या होगा, चरणचुंबकों का नंबर बीजेपी आलाकमान के नजदीक अब तो बढ़ ही नहीं पाएगा. ओफ्फ्फ्फ…मतलब कि झूठों और अनपढ़ों की बारात है BJP. याद है आपको, कुछ दिनों पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के चहते एलन मस्क ने भारत को बदनाम करने के लिए एक झूठ बोला कि अमेरिका ने भारत को ‘वोटर टर्नआउट’ के लिए दी जाने वाली 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग बंद कर दी, अब इसकी सच्चाई सामने आ गई है.

क्या है मामला?

USA से चलकर भारत पहुंचे इस झूठ को सत्ताधारी बीजेपी के लोगों ने न जांचा न परखा बस देशभर में फैलाना शुरू कर दिया. पर अब जिस 21 मिलियन डॉलर पर भाजपाई और चरणचुंबक उछल रहे थे, वो खबर तो फेक निकली. 2022 में 21 मिलियन डॉलर भारत में ‘वोटर टर्नआउट’ के लिए नहीं, बांग्लादेश के लिए थे. जबसे ट्रम्प प्रशासन के DOGE ने 16 फरवरी को कहा कि USAID द्वारा “भारत में मतदान” के लिए 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग को रद्द कर दिया है, तबसे भाजपा ने कांग्रेस पर मनगढ़ंत आरोप लगाए हैं.

लेकिन अब पता चल रहा है कि यह तो पूरी ख़बर फ़र्ज़ी है. जब पैसा भारत आया ही नहीं तो रद्द क्या होगा? बात तो वही है कि एलोन मस्क ने फ़र्ज़ी दावा किया. अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ढाका और दिल्ली में कंफ्यूज हुए, जैसे विवेकानंद के नाम और सचिन तेंदुलकर के नाम में कंफ्यूज हुए थे. लेकिन ट्रंप और मस्क के इस झूठ को बीजेपी आईटी सेल के महामहिम अमित मालवीय ने आगे फैलाया. बाकी बची-खुची कसर बीजेपी के अंधभक्त और चरणचुंबकों ने पूरा कर दिया.

बांग्लादेश के लिए था USAID अनुदान

असल में सारा विवाद DOGE की लिस्ट में दो USAID अनुदान को लेकर है जिन्हें USA में वाशिंगटन स्थित CEPPS के माध्यम से दिया गया था. CEPPS को USAID से कुल $486 मिलियन मिलने थे. DOGE के अनुसार, इस धनराशि में मोल्दोवा के लिए $22 मिलियन; और “भारत में मतदान प्रतिशत” के लिए $21 मिलियन शामिल थे. लेकिन भारत के लिए DOGE द्वारा चिह्नित USAID $21 मिलियन का अनुदान बिल्कुल फ़र्ज़ी है. क्योंकि यह बांग्लादेश के लिए था, भारत के लिए नहीं. आप ये भी जान लीजिए कि बांग्लादेश के लिए निहित 21 मिलियन डॉलर में से 13.4 मिलियन डॉलर वहाँ जनवरी 2024 के चुनाव के पहले ही दिया जा चुका है.

ये जो बीजेपी के चरणचुंबकों की टोली कहती फिर रही है कि USA की पहले वाली सरकार ने भारत में चुनाव को प्रभावित करने के लिए 21 मीलियन डॉलर पैसे खर्च किए हैं. असल बात तो ये है कि अमेरिकी फ़ेडरल खर्च के अनुसार, 2008 के बाद से भारत में कोई USAID वित्त पोषित CEPPS प्रोजेक्ट ही नहीं है. $21 मिलियन का USAID अनुदान जुलाई 2022 में बांग्लादेश की “अमार वोट अमार” के लिए स्वीकृत किया गया. नवंबर 2022 में, इस अनुदान का उद्देश्य बदल करके “USAID का नागोरिक कार्यक्रम” कर दिया गया.

पर अब सवाल तो मोदी सरकार से बनता है कि उसने भारत के लोकतंत्र को लेकर फ़र्ज़ी ख़बर क्यों फैलाई. USA से फ़र्ज़ी ख़बर फैला कर देशविरोधी काम क्यों किया. जवाब तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर को भी देना होगा कि आखिर भारत की विपक्षी पार्टी पर अमेरिका से झूठे आरोप लगना राष्ट्रद्रोह नहीं है तो क्या है?


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